अंधेरा
Hindi

अंधेरा पसंद है मुझे कोई भेद-भाव नहीं करता ये तो उजाला है जो फरक बताता है अच्छा है, शाम ढलते ही.. अंधेरा छा जाता है इंसान, कुछ समय के लिए मुर्दा बन जाता है वैसे भी जिंदा, कौन है यह चीखे है, जो सुनायी नहीं देती बेबसी है, जो दिखाई नहीं देती सड़क पर बच्ची, भूक से बिलबिलाती है बलातकार पीड़िता भी यहा, इंसाफ के लिए चिलाती है बहरे है यहा...... या कोई जिंदा ही नहीं शरीर है... पर शायद आत्मा ही नहीं काला चश्मा पहन, अँधेरा किया है ताकि सच, दिखाई ना दे महंगे ईयरफोन भी खरीदे है ताकि सच, सुनाई ना दे तेज़ गाड़ी भी खरीदी है पीछा छुटाने को रोज मुखौटा भी लगाया है खुद को जिंदा दिखाने को जवानी को गिरवी रख कबर ख़रीदी है, 2 बेडरूम साइज़ कि सपने को छोड़, सुन्ते है ख़्वाइश कि ख्वाइशो के तले, सपनों को दफ़नाते हैं पर ये सपने ही हैं जो hume जिंदा दीखाते है मिट्टी नहीं है ऊपर पर दफन है, चार दिवारी मै आवाज नहीं उठाते खामोश है, ना जाने किस लाचारी मै अच्छा है शोरगुल है चारो तराफ चीखे सुनायी नहीं देति अच्छा है अँधेरा है ये जो जिंदा लाशे है, दीखायी नहीं देती

A commentary on modern society's indifference.