ख़ामोशी
Hindi

“कभी-कभी सबसे ऊँची चीख… चुप्पी होती है।” एक कहानी ऐसी भी जो किसी ने सुनायी नहीं, गुजरी थी क्या उस पर कभी उसने बताई नहीं। घुट घुट अंदर सब सहता रहा, “ठीक हूँ” सब से कहता रहा। अंदर की तपन ज़ुबा पर आने ना दी, अंदर ही अंदर उसे जलाती रही। वो चीखता रहा, चिल्लाता रहा, फिर भी सब के सामने मुस्कुराता रहा। लड़खड़ा रहा था वो, पर किसी को दिखाई नहीं दिया। चिल्ला रहा था, पर किसी को सुनाई नहीं दिया। चीख-चीख अब उसका गला सूख गया, उम्मीद का धागा टूट गया। रस्सी पड़ी थी जो सामने, उसे उठाया, बना फंदा, डाल गले में, अपने दर्द को मिटाया। ख़ामोशी अब सन्नाटे में बदल गई, शरीर पड़ा था, आत्मा निकल गई। अब वो चुप था, पर सब चिल्ला रहे थे — “काश मुझे कहा होता, काश मुझे बताया होता…” गुनगुना रहे हैं, अब सब सुनना चाहते थे, पर सुनाने वाला ना था। उसकी क्या कहानी थी, बताने वाला ना था।

✍️ लेखक का नोट — Vivek Singh “कुछ कहानियाँ आवाज़ नहीं माँगतीं, वो बस आँखों से सुनाई देती हैं। हम सब किसी न किसी वक़्त उस ख़ामोशी के हिस्से बन जाते हैं — जहाँ शब्द नहीं, एहसास बोलते हैं।”