फूल
Hindi
फूल से सीखा है मैंने जीने का सलीका। कीचड़ में खिलते देखा, काँटों के बीच निकलते देखा। तेज़ धूप है तो क्या हुआ, ख़ुशी से मुस्कुराते देखा। खिल जाते हैं... बिन पानी के भी। मिट्टी न मिले तो पत्थर पर भी। कीचड़ है — तो क्या हुआ? रेतीली है ज़मीं — तो क्या हुआ? खुला मैदान मिला है कुछ को, सही खानपान मिला है कुछ को, पर जिसको जीतना मिला, उसी में मुस्कुराते देखा। फूलों को मैंने हमेशा खिलखिलाते देखा। फूल से सीखा है मैंने जीने का सलीका।
“ज़िंदगी फूलों जैसी होनी चाहिए — कीचड़ में भी खिलने की हिम्मत रखे, और धूप में भी ख़ुशबू बाँटने की ताक़त。 हालात चाहे जैसे हों, मुस्कुराना ही असली जीत है।”