शहर
Hindi

“जहाँ आसमान बिकता है, वहाँ साये भी महँगे होते हैं।” शहर में आसमान भी खुद को छुपा लेता है काली चादर को ओढ़ कर शायद डरता है, कहीं कोई बेच न दे बोतल (bottle) में बाँध कर। चाँद भी कुछ नाराज़-सा है, तारों ने भी झिलमिलाना कम कर दिया है, शायद उदास है वो, अपनी जगह छीन जाने से। चाँद-तारों की कहानियों की जगह कार्टून नेटवर्क, डिज़्नी (Disney) के आ जाने से। पेड़ों का भी क्या — दम घुटता होगा, खुली हवा और धूप न मिलने से। क्या वो भी रोते होंगे शाखाओं के काटने से? क्या उनमें भी इच्छा होती होगी ज़ंजीरों को तोड़ हाथ फैलाने की, दूर किए हैं जो उनसे आपने, उनसे हाथ मिलाने की। पक्षियों के घर भी छीन लिए हैं, अपना घर बनाने को, फिर रिझाते हैं उनको — दाना, दाल, उनका संगीत पाने को। मिट्टी को तो हम माँ बुलाते हैं, पर उसी के शरीर को नग़्न कर, पानी तक के लिए तरसाते हैं।

✍️ लेखक का नोट — Vivek Singh शहर बढ़ा, तो आसमान सिकुड़ गया। काँक्रीट के जंगल उगे, और पेड़ों की साँसें थम गईं। इंसान ने बहुत कुछ पाया, मगर खोया — वो सब जो उसे ज़िंदा रखता था।